केंद्रीय विद्यालय क्रमांक 2 वायु सेना स्थल सूरतगढ़ का पूरा प्रयास है कि हमारे विद्यार्थी शैक्षणिक के साथ-साथ शारीरिक एवं मानसिक रूप से भी स्वस्थ ओर सशक्त बनें । अभिभावकों का भी इस दिशा में हमेशा पूरा सहयोग मिलता रहता है। यह एक साफ़ सुथरा , सुरक्षित एवं हरा – भरा प्रांगण है जहाँ हमारे विद्यार्थी तनावमुक्त एवं प्रसन्नचित्त रहते हैं। विद्यालय में एक उत्तम, संवर्धित कंप्यूटर लैब, विज्ञान प्रयोगशाला, सभी आधुनिक एवं तकनिकी सुविधाओं से युक्त संसाधनकक्ष और पुस्तकालय है। खेल पर विशेष ध्यान दिया जाता है, इसलिए वॉलीबॉल, कबड्डी , खो-खो ओर बैडमिंटन के अच्छे मैदान हैं। सभी कक्षाओं में कूलर ओर एलसीडी प्रोजेक्टर लगे हुए हैं । पीने के लिए आर ओ का शुद्ध जल उपलब्ध करवाया जाता है। पूरे कैंपस में वाईफाई की सुविधा है। वाद्य यंत्रो के साथ उत्तम गुणवता की प्रातः कालीन सभा होती है । वर्ष पर्यंत अनेकों पाठ्य-सहगामी क्रियाएं आयोजित की जाती हैं जो विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जीवन को प्रसन्नता से जीने के लिए शारीरिक , मानसिक और आर्थिक रुप से सशक्त होना नितांत आवश्यक है। विद्यालयी शिक्षा का उद्देश्य है ऐसे नागरिकों का निर्माण करना जो स्वयं भी भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप सक्षम हों और समाज और राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकें। शारीरिक रूप से मजबूत होने के लिए संतुलित भोजन और नियमित व्यायाम का महत्त्व सब जानते हैं। आर्थिक रूप से भी नई पीढ़ी दिनों दिन उन्नति कर रही है. लेकिन मानसिक रूप से अपने बच्चों को सशक्त बनाने के लिए और बेहतर परवरिश की आवश्यकता है. बच्चे थोड़े से तनाव , विरोध या चुनौती से घबराने लगे हैं। सहनशक्ति में भी बहुत गिरावट होती जा रही है। लाड प्यार की अंधी बारिश ने बच्चों को अतिसंवेदनशील बना दिया है। अक्सर आत्मविश्वासी बनाने के असंतुलित प्रयास में अभिभावक बच्चों को गलती पर भी उन्हें टोकना उचित नहीं समझते। ऐसा करने से बच्चे असहनशील, अहंकारी, अभद्र और मानसिक रूप से दुर्बल बन जाते हैं। ज़रा सा तनाव आते ही तिलमिलाने लगते हैं। बढती आत्महत्याओं की संख्या इसी ओर संकेत करती है। अतः बचपन से ही बच्चों को आंतरिकरूप से मजबूत बनाने के लिए उन्हें संघर्षशील ओर सहनशील बनाएं। खेल या शारीरिक मेहनत से थोडा पसीना आना और सांस फूलना भी जरुरी हैं। हमें धर्यवान और संघर्षशील युवा चाहियें, न की टेडीबीयर। उन्हें मिट्टी और पानी में खेलने दें. बुजुर्गों के पास बैठने का , उनसे बातें करने का अवसर उपलब्ध करवाएं। अपने मित्र वृत्त में हंसी और मस्ती करने दे। हर चीज को अपने स्टेटस से न जोडें। भावनात्मक रूप से सशक्त होना बहुत आवश्यक है। सूचनाएं तो आज मोबाइल में गूगल में एक क्लिक पर उपलब्ध है। जरुरी है उस ज्ञान को अपने जीवन में कैसे उपयोग में लाना है। सिर्फ किताबी ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है। नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति और मूल्यों को अपने जीवन में ढालने की भी महती आवश्यकता है। शिक्षक और अभिभावक को मिलकर एक स्वस्थ और सशक्त पीढ़ी का निर्माण करना है। यह एक चुनौती है हम सबके लिए और हमें इसे स्वीकार करना ही है।
जय हिन्द , जय भारत